बावन,हरदोईसेवा ही धर्म’ की भावना पर चलकर लोगों की मदद की,अति साधारण परिवार में जन्मे किंतु अपने निज पौरुष से सब कुछ प्राप्त किया,
पहलवानी का बचपन से शौक था लेकिन धन के अभाव में जब खानगी नही हो पाई तो देशी औषधियां के सहारे ही इतना परिश्रम किया कि लोग बताते हैं दो जीपों को रोकते और सीने पर पत्थर तोड़वाते थे ।उम्र के ढलान के साथ पहलवानी तो छोड़ दी लेकिन हर साल अपनी मेहनत से तैयार की गई जमीन( अखाड़ा)पर दंगल यज्ञ और मेला करवाते रहे और जीवन पर्यंत पहलवानों को प्रोत्साहित किया।अखाड़े पर हमेशा ही तमाम दींन दुखी महात्मा रहते थे जिनको प्रतिदिन भोजन कपड़े आदि की व्यवस्था करते रहते थे,
अपने बाबा नारायण के नाम पर कॉलेज खुद के बनाये , बावन से लेकर हरदोई में भी अच्छी मिठाई की दुकानें थी, यश धन की कोई कमी नही थी,लेकिन सादगी इतनी की कोई मिलने चला जाता तो खुद अपने हाँथ से पानी पिलाते, दावत किसी के यहाँ भी होती लेकिन गुरुजी कभी खाली नहीं बैठते है किसी न किसी को खाना पानी देते ही नज़र आते, ऐसा अनोखा सेवा भाव शायद ही किसी मे हो,
यही कारण था कि गुरुजी जब भी पैदल निकलते तो ठीक से चल नही पाते जो भी सामने पड़ जाता सीधे पैरों में ही झुक जाता, बड़े बड़े लोगों को भी ऐसा सम्मान नसीब नही होता,इसके आगे भी कितना लिखूं शब्द कम पड़ जाएंगे लेकिन गुरुजी के बारे में बातें खत्म नही होंगी।वक्त कैसा भी कठिन रहा हो लेकिन गुरुजी ने कभी हार नही मानी लेकिन आज गुरुजी 15 दिन तक कोरोना से लड़ते लड़ते आखिकार जिंदगी की जंग हार गए।क्या कहूँ बावन की एक महान विभूति चली गयी,